09 July 2009

कुछ लम्हे..

कोई पुरानी आदत तो नही थी,

फ़िर बी पीने लगाहू/

जिंदा रहेने की कुईश तक नही थी,

जुदाई का गम सहते फ़िर बी जीने लगाहू//

पता होता अगर हाल-ऐ-दिल बयान करना है इतना मुश्किल,

थो हम कभी प्यार न करते/

मालूम होता शायाधर पल गुट गुट मरने का दर्द,

थो हरगिस यारा...हम जनम न लेते//

क्या इस रिश्ते का एहसास और एक मोव्का नही देगा?

क्या अपनी गमंद की कीमत हमारे जस्बाथों को चुकाने पड़ेंगे?/

दर्द-ऐ-बेकरार....क्या फ़िर कभी

हम मिल न पायेंगे?//

कुईश थी जिस पान्हा की,

वो पूरी होगई/

मंजिल भी पायी मैंने...मकसद बी हवी हासिल,

मेरे सूनी ज़िंदगी के सफर में आप जो मिले//

अगर आप के जुदाई का गम नही ,

थो फ़िर बी हम पीते जरूर/

मगर इस बार,

हासिल हवी आपके मोहब्बत की....कुशी के कातिर//

कुछ इस थार मुज में समा जावो,

किसी और को पता तक न चले/

तनहा प्यार को बी बजा जावो,

आगे कभी पीने को कुइस ही ना किले//

No comments: