कोई पुरानी आदत तो नही थी,
फ़िर बी पीने लगाहू/
जिंदा रहेने की कुईश तक नही थी,
जुदाई का गम सहते फ़िर बी जीने लगाहू//
पता होता अगर हाल-ऐ-दिल बयान करना है इतना मुश्किल,
थो हम कभी प्यार न करते/
मालूम होता शायाधर पल गुट गुट मरने का दर्द,
थो हरगिस यारा...हम जनम न लेते//
क्या इस रिश्ते का एहसास और एक मोव्का नही देगा?
क्या अपनी गमंद की कीमत हमारे जस्बाथों को चुकाने पड़ेंगे?/
दर्द-ऐ-बेकरार....क्या फ़िर कभी
हम मिल न पायेंगे?//
कुईश थी जिस पान्हा की,
वो पूरी होगई/
मंजिल भी पायी मैंने...मकसद बी हवी हासिल,
मेरे सूनी ज़िंदगी के सफर में आप जो मिले//
अगर आप के जुदाई का गम नही ,
थो फ़िर बी हम पीते जरूर/
मगर इस बार,
हासिल हवी आपके मोहब्बत की....कुशी के कातिर//
कुछ इस थार मुज में समा जावो,
किसी और को पता तक न चले/
तनहा प्यार को बी बजा जावो,
आगे कभी पीने को कुइस ही ना किले//
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