20 March 2010

कुछ दूर दूर से...

जो कभी कहा नहीं था,
हमने अपनी जबांसे/
उस बात की नमी,
अपनी आन्कोमे चुप के से जलक रही है//


बेशक ये वही तड़प की सन्स है,
कभी न थमने वाली कायलों की बरसात है/
कभी न बुज्नेदो इस प्यास को,
जालिम मोहोब्बत के नशे की...एहसास को//

ಸನಿಹ ಇರದೆ ಎಲ್ಲಿ ಹೋದೆ?

ನಮ್ಮಿಬ್ಬರ ನಡುವೆ ಇರೋದನ್ನ ಏನೆನ್ನಲಿ?
ಸಂಬಂಧದ ಅದ್ಯಾವ ಹಣೆಪಟ್ಟಿ ಹಚ್ಚಲಿ?/
ಹೆಸರಿಟ್ಟ ಮಾತ್ರಕ್ಕೆ ಇದು ಹೆಚ್ಚೋದಿಲ್ಲ,ಮೌನವಾಗಿದ್ದಾರೆ ತಾನೆ ಏನು? ಮುಕ್ಕಾಗೋದೂ ಇಲ್ಲ//



ಪೌರ್ಣಮಿಯ ನವೆಯೋ ಚಂದಿರ,
ಕ್ಷಯವೇ ನಿನಗೆ? ಇಲ್ಲ ವಿರಹ?/
ಮನಸ ಕೊಟ್ಟು ಮರೆತೆಯೋ?
ಮರೆತು ಮನಸ ಕೊಟ್ಟು ಕೆಟ್ಟೆಯೋ?//



ಮುದ್ದಿಸಿದ ತುಟಿಗಳ ತಪ್ಪಲ್ಲ,
ಮತ್ತೇರಿಸಿದ ಮುತ್ತಿನದೆ ಅಪರಾಧ ಅದು/
ಒಂದಕ್ಕೆ ಅಮಲೇರಿಸಿ,
ಇನ್ನೊಂದೇ ಒಂದನ್ನು ಕೊಡದೆ ಹೋದರೆ ಹೇಗೆ?//



ಗಾಳಿಗೇನು ಗೊತ್ತು ನಿನ್ನ ಮೈ ಗಂಧ?
ಅತ್ತರಿಗೇನು ಗೊತ್ತು ನಿನ್ನ ಸ್ವೇದ ಸುಗಂಧ?/
ಮೋಸ ಹೋದೆನಾದರೂ ಹೇಗೆ ಕೃತಕ ಪರಿಮಳಕೆ? ಹೇಳು,
ನೀನೆ ನನ್ನುಸಿರಲಿ ಅವಿತಿರುವಾಗ...ನನ್ನೊಳಗೆ ಕರಗಿ ಬೆರೆತಿರುವಾಗ//

19 March 2010

ग़म के सायेमे....

सोच में पड़े है,
दिल के अरमान सारे/
तुम को जो चुवाथा...
उन के नज़र के तीर सारे,
ताब हमने क्या कुछ कोअथा?
या पायाथा?//


ज़ालिम ये मोहब्बत,
चैन से जीने ना दे/
गुट गुट के मारे जुदायिके ग़म में,
गुत्नोमे कड़े हुवे....मेरे जैसे आशिक को बेवजा//

आधी अधूरी....

सब कुछ मुनासिब है,
सिवाए मुकदना मोहब्बत से/
मांगने से जब खुदा भी मिलता है थो,
तुम बिन तड़पने वाले को...तुम्हारा साथ क्यों नहीं?//



बद नसीबी की भी सीमा हद पार करगई,
न रही साथ अपनी...आप के साथ की ईद/
अब जो भी बचा-कूचा हैठो,
ग़म का मुहर्रम...और एक धूर की उम्मीद//



अब आपसे क्या छुपाना?
जब चित्त हो ही चुके है/
वाकेही सारे कुँबों के तीर लुटाके,
खाली थर्काश हाथ में लिए...हार मान ही छुके है//



मोवला मुझे मोव्थ बक्श दे,
गुट गुट के तन्हाई में तड़पने से वोही बाला/
बिन हमसफ़र के में,
जलते रेत में फटे कद्मोंको रक्थे...ग़म के रेगिस्थानमें भिकारोयो के माफिक चला//