करता हु कुछ थो हु आदत से मजबूर,
धाम बी तोड़ ने तैयार हु जो आप के कातिर/
इंतनी बेशर्मी कबी न थी,
चाहत का बीक मांगते आया में अब तुम्हारी महफिल//
करता हु कुछ थो हु आदत से मजबूर,
धाम बी तोड़ ने तैयार हु जो आप के कातिर/
इंतनी बेशर्मी कबी न थी,
चाहत का बीक मांगते आया में अब तुम्हारी महफिल//
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