28 February 2010

देह्षक..

शायद आसमान को बी मालूम है मेरा हाल/
लो इसका गवा,बादलों से बूंदे टपक पड़ी//


आसमान देक्ठे ही पला बड़ा,
सिर्फ बादलों की कुईश में/
फूटी किस्मत से जो जुदा है नाता..गन्हे मेघा,
मुज्पे मेहरबान होके बरसठी ही नहीं//


तन्हाई में तड़प न क्या होता है,
कोई बाला हम से पूछे/
तनहा जब पीते है थो उतर जाती है नशा,
कम्बक्थ जो बिन पिए चदा रहता है//



ये मेरे उन्चुवे कयालोंके जनाजा है,
ज़रा शान से निकले/
बीच रास्ते उनकी गर की गली भी मिलेंगी,
मूर्धा मोहब्बत भी...आन से निकले//

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